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Showing posts from May, 2017

स्थलमंड का विकास

ग्रहाणु व दूसरे खगोलीय पिंड ज्यादातर एक जैसे ही घने और हल्के पदार्थों के मिश्रण से बने हैं। उल्काओं के अध्ययन से हमें इस बात का पता चलता है। बहुत से ग्रहाणुओं के इकट्ठा होने से ग्रह बनें। पृथ्वी की रचना भी इसी प्रक्रम के अनुरूप हुई है। जब पदार्थ गुरूत्वबल के कारण संहत हो रहा था,   तो उन इकट्ठा होते पिंडो ने पदार्थ को प्रभावित किया। इससे अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न हुई। यह क्रिया जारी रही और उत्पन्न ताप से पदार्थ पिघलने/गलने लगे ऐसा पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान और उत्पत्ति के तुरंत बाद हुआ। अत्यधिक ताप के कारण,   पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में रह गई और तापमान की अधिकता के कारण ही हल्के और भारी घनत्व के मिश्रण वाले पदार्थ घनत्व के अंतर के कारण अलग होना शुरू हो गए। इसी अलगाव से भारी पदार्थ (जैसे लोहा) पृथ्वी के केन्द्र में चले गए और हल्के पदार्थ पृथ्वी की सतह या ऊपरी भाग में आ गए। समय के साथ यह और ठंडे हुए और ठोस रूप में परिवर्तित होकर छोटे आकार के हो गए। अंततोगत्वा यह पृथ्वी की भूपर्पटी के रूप मे विकसित हो गए। हल्के और भारी घनत्व वाले पदार्थों के पृथक होने की इस प्रक्रिया को विभे...

मैंटल(The Mantle)

भूगर्भ में पर्पटी के नीचे का भाग मैंटल कहलाता है। यह मोहो असांतत्य से आरंभ होकर 2900 कि0मी0 की गहराई तक पाया जाता है। मैंटल का ऊपरी भाग दुर्बलतामंडल ्हा जाता है। एस्थेनो शब्द का अर्थ दुर्बलता से है। इसका  विस्तार 400 कि0मी0 तक आँका गया है।