सागरीय तापमान
सागरीय तापमान :—
यह महासागरीय जल का महत्वपूर्ण भौतिक गुण है। यह सूर्यातप
की मात्रा, ऊष्मा संतुलन, सागरीय जल के घनत्व, लवणता, वाष्पीकरण व संघनन, स्थानीय
मौसमी दशाओं आदि द्वारा निर्धारित होती है। ये सागरीय धाराओं, समुद्री जीव-जंतुओं
व वनस्पतियाँ का निर्धारण करते हैं। महासागरीय जल की सतह का औसत दैनिक तापांतर
नगण्य (लगभग 1˚C) होता है।
सामान्यतः सागरीय जल का अधिकतम तापमान दोपहर दो बजे एवं न्यूनतम तापमान सुबह पाँच
बजे देख जाता है। अगस्त में सागरीय जल का तापमान सर्वाधिक व फरवरी में न्यूनतम
रहता है। सामान्यतः हासागरीय भाग का तापमान लगभग -5˚C से 33˚C तक रहता है।
विषुवत वृत के समीप का सागरीय जल सबसे अधिक गर्म रहता है एवं ध्रुवों की ओर जाने
पर तापमान में क्रमिक ह्रास होता है। विषुवत वृत पर वार्षिक तापमान 26˚C रहता है जबकि 20˚ व 40˚ व 60˚ अक्षांशों पर यह
क्रमशः 23˚C,14˚C और 1˚C होता है। 20˚ उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के बीच तथा 50˚ दक्षिणी-अक्षांश
वृत से दक्षिण में तापांतर की सर्वाधिक मात्रा उत्तर-पश्चिमी अटलांटिक में न्यू
फाउंडलैंड के समीप (लगभग 20˚C) तथा
उत्तर-पश्चिमी प्रशांत में व्लाडिवोस्टक के समीप (लगभग 25˚C) होती है। सबसे अधिक तापमानस्थल भाग से घिरे
हुए उष्णकटिबंधिय सागरों में होता है। उष्णकटिबंधों में व्यापारिक हवाओं के प्रभाव
के कारण महासागरों के पश्चिमी भाग पूर्वी भाग की अपेक्षा अधिक गर्म रहते हैं। इसी
प्रकार समशीतोष्ण कटिबंधों में पछुआ पवन महासागरों के पूर्वी भागों को पश्चिमी
भागों की अपेक्षा अधिक गर्म रखती हैं। गहराई बढ़ने के साथ-साथ सागरीय जल के तापमान
में कमी आती है। परंतु तापमान की यह ह्रास दर सभी गहराई पर एक सी नहीं होती। लगभग
100 मी. की गहराई तक सागरीय जल का तापमान धरातलीय तापमान के लगभग बराबर होता है।
1800 मी. गहराई पर तापमान 15˚C से
घटकर लगभग 2˚C रह जाता है। 4000 मी.
की गहराई पर यह घटकर लगभग 1.6˚C रह
जाता है।
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